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Q1 ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ किसे कहा गया हैं और क्यों?
Ans: अस्थिर सुख पर दुःख की छाया अस्थिर सुख दुःख की छाया विनाश की आशका को कहा गया है वे अपनी सुख – सुविधा के खोने मात्र से भयभीत रहते है उनका सुख अस्थिर है जिनके पास आवश्यकता से अधिक रहेता है जो समाज कि भलाई के लिए आवश्यक है और उसे खोने मात्र कि आशका उन्हें दुखी करती है I
Q2 ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर ‘ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया है ?
Ans: अशनि – पात से शापित उन्नत शत शत वीर पक्ति में विरोधी गवीले वीरो कि और सकेत करती है जो क्रांति के वजाघात से घायल होता हो है बदलो के वजपात से उन्नति के शिखर पर पहुचे सेकड़ो वीर पराजित होकर मिटी में मिल जाते है बादलो कि गजना और मूसलाधार वर्षा में बड़े से बड़े पर्वत वृक्ष ख़राब हो जाते है उनका अस्तिव नष्ट होता है उसी प्रकार क्रांति की हुकार से पूजीपति का धन सम्पति तथा आदि का विनाश कर जाता है अथार्त उनके शोषण का अन्त करके जाता है I
Q3 विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते ‘ पंक्ति में ‘ विप्लव-रव ‘ से क्या तात्पर्य है ? ‘ छोटे ही है हैं शोभा पाते ‘ एसा क्यों कहा गया है ?
Ans: विपल्व रव से छोटे ही है शोभा पाते पंक्ति में विपल्व रव से तात्पर्य होता है क्रांति I क्रांति जब आती है तब गरीब सामान्य वर्ग आशा से भरा रहेता है एव धनी पूजीपति वर्ग अपने विनाश की आशंका से भयभीत हो कर उठ जाता है छोटे लोगो के पास खोने के लिए कुछ भी नही उन्हें सिर्फ इससे लाभ
होगा इसीलिए कहा गया है कि छोटे ही है शोभा पाते जेसे भयकर आधी, तूफान के बीच छोटे – छोटे पोधे अपनी जड़ कभी भी नही छोडते है IQ4 बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती हैं?’
Ans: बादलो के आगमन से ससार में निम्नलिखित परिवर्तन होते है
- समीर बहने लगती है I
- बादल गरजने लगता है I
- मूसलाधार वर्षा होती है I
- बिजली चमकने लगती है I
- छोटे छोटे पोधे खिल उठते है मौसम सुहावना रहेता है I - गर्मी के कारण दुखी प्राणी बादलो को देखकर खुश होते है IQ5 व्याख्या कीजिए-
(क) तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-(ख) अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,Ans: 1 कवि बादल को सबोधित करते हुए कहता है कि है क्रांति दूत रुपी बादल तुम आकाश में ऐसे घूमते रहते है जेसे पवन रुपी सागर पर नोका तेर रही हो छाया उसी प्रकार पुजीपतियो के वैभव पर क्रांति की छाया मंडरा रहती है इसलिए कहा गया है अस्थिर सुख पर दुःख की छाया अथार्त उनके सुख अस्थिर है जो कभी नष्ठ नही होता है I
2 कवि कहते है कि पुजीपतियो के उच्चे – उच्चे भवन भवन नहीं होता है अपितु ये गरीबो को आतकित करने वाले भवन नहीं होते है इसमें रहने वाले लोग महान नही रहते है जल की विनाशलीला तो सदा पक को ही डूबोती है I
Q6 पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों ?
Ans: कविता में प्रकति का मानवीय किया जाता है I मुझे बादलो का गर्जन कर क्रांति लानेवाले रूप पसंद करता है क्योकि जिस प्रकार बादलो की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े बड़े पर्वत, वृक्ष घबरा जाते है उनको उखडकर गिर जाने का भय रहता है उसी प्रकार क्रांति की हुकार से पूजीपति घबरा उठते है वे दिल थाम कर रह जाते है उन्हे अपनी सपति एव सता के छिन जाने का भय रहता है I
.......ऐ विप्लव बादल
बार – बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार
हर्दय थाम लेता ससार
सुन सुन घोर व्रज हुकार IQ7 कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है ? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए ।
Ans: तिरती है समीर – सागर पर
- अस्थिर सुख पर दुःख की छाया
- यह तेरी रण – तरी
- भेरी – गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
- ऐ विप्लब के बादल
- ऐ जीवन के पारावार