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Q1 लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है?
Ans: आचर्य हजारी प्रसाद दिर्वेदी शिरीष को अदभूत मानते थे क्योकि सन्यासी की भाति वह भी सुख दुःख की चिता नहीं थी शिरीष कलयाज़ी अबधूत की भाति जीवन अजये मत्र का प्रचार होता था तब भी वह कोमल फूलो से लदा लहलहाता था I बाहरी गरमी , धूप , वर्षा आधी लू उससे प्रभावित नहीं थे I
Q2 हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है – प्रस्तुत पीठ के आधार पर स्पष्ट करें।
Ans: मनुष्य को ह्र्दय की कोमलता को बचाने के लिए बाहरी तोर पर कठोर बनना पड़ता था ताकि वे विपरीत परिस्थी का सामना कर पाते और कठोर निर्णय ले सकते थे I
Q3 विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
Ans: जब पृथ्वी अग्री के समान तप रही थी तब भी शिरीष का पेड़ कोमल फूलो से लदा लहलहाता
था बाहरी गरमी धूप, वर्षा आधी आधी लू उसे प्रभावित नहीं थी इतना ही नहीं वह लबे समय तक खिलाता था इसी तरह जीवन में किसी भी प्रकार की कठनाई क्यों न उत्पन्न हो जाए मनुष्य को शांत भाव से उस पर जीत हासिल करने का प्रयास करता है IQ4 हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
Ans: अवधूत सासारिक मोह माया से ऊपर उठा व्यक्ति था जो आत्मबल का प्रतीत था परंतु आज मानव आत्मबल की बजाय देहबल धनबल आदि जुटाने में लगे थे आज मनुष्य मूल्यों को त्यागकर
हिसा कलाबाज़ी घूसखोरी आदि गलत को अपनाकर अपनी ताकत एव श्रमता का प्रदर्शन करता था IQ5 कवि ( साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थित प्रज्ञता और विदग्ध प्रेम का हृदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइए।
Ans: लेखक ने सहित्य कर्म के लिए बहुत ही ऊचा मानदड निधारित करते है क्योकि लेखक के अनुसार वही महान कवि बन सकता था जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहदय होता था I छद तो कोई भी लिख सकता था परन्तु उसका यह अर्थ नहीं कि वह महकवि नहीं थे I
Q6 सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
Ans: मनुष्य को चाहिए कि वः स्वय को बदलते समय के अनुसार ढाल लेते है जो मनुष्य सुख दुःख , निराशा आशा आदि भाव से रहकर अपना जीवनयापन करता था वहि प्रतिकूल समय को भी अपने अनुकूल बनाता था वह शिरीष की तरह ही जीवी होता था I उन्होंने न केवल अपने जीवन में सरसता उत्पन की दूसरो के सामने इच्छाशक्ति का उदहारण भी प्रस्तुत करता था I
Q7 आशय स्पष्ट कीजिए
- दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।
- जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?…मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
- फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
Ans: 1. इन पक्तियों का आशय व्यक्ति के जीवन जीने की कला से थे लेखक के अनुसार दुरत प्राणधारा कालाग्री के मध्य सघर्ष निरतर चलता था जो बुदिमान थे वे इससे सघर्ष कर अपना जीवनयापन करते थे मूर्ख व्यक्ति यह समझते है कि वे जहां हे वहा डटे रहने से काल देवता की नज़र से बचते थे I
2. इन पक्तियों का आशय सच्चा कवि बनने से है लेखक के अनुसार यदि महान कवि बनना है तो अनासक्त और फक्कड बनाना होता था यदि वह अपने कर्यो का लेखा जोखा हानि लाभ मिलनर में उलझ जाते थे वह कवि नहीं बन पाते थे I3. इस पक्ति का आशय सुदरता और सर्जन की सीमा से होता है लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि फल पेड़ और फूल इनका अपना अपना अस्तिव होता था I ये यू ही सम्पाप्त नहीं होते थे I
Q8 शिरीष के पुष्य को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?
Ans: ज्येष्ठ माह में प्रचड गर्मी पड़ती थी लू के भयकर थपेडे चलते है फिर भी ऐसी गर्मी में तो इन कोमल फूलो को मुरझा जाना चाहिए था किन्तु ये खिले रहते है और यह तभी सभव थे I
Q9 कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए?
Ans: गाधी जी ने जन सामान्य की पीड़ा से द्रवित होकर देश को आजाद करने का बीडा उठाया जो उनके कोमल स्वभाव का परिचायक था वही अग्रेजो के अत्याचारों के खिलाफ वे व्रज की भाति तनकर खड़े होते है जो उनकी कठोरता का प्रतिक था I