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Q1 इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?
Ans: बच्चे खेल खेल में अपनी सीमा अपने परायो का भेद भूल जाते है वे एक जगह से दूसरी जगह बिना विचारे दौड़ते रहते है उन्हें किसी के रोक टोक की चिंता नहीं होती है उसी प्रकार कविता भी शब्दों का खेल होता है इसका क्षेत्र व्यापक रहता है उसे किसी का भय नहीं होता है कलम को किसी बधन में बाधा नही जाता है अत: कवि को कविता करते वक्त अपने पराये या वर्ग विशेष का भेद अथवा बधन भूलकर लोक हित में कविता लिखवा लेनी चाहिए I
Q2 “उड़ने’ और “खिलने” का कविता से बया सबंध बनता हैं?
Ans: पछी की उड़ान और कवि की कल्पना की दोनों दूर तक रहेती है दोनों का लक्ष्य ऊचाई मापना होता है कविता में कवि की कल्पना की उड़ान रहती है जिसकी सीमा अनन्त रहेती है इसलिए कहते है जहां न पहुचे रवि वहां पहुचे कवि जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुगध एव सौधर्य से लोगो को आनद प्रदान रहेता है नवजीवन देता है उसी प्रकार कविता भी सदेव खिली रहकर लोगो को भावो विचारो का रसपान कराती रहेती है पाठको में नवीन स्फूर्ति एव उर्जा का संचार कराती है I
Q3 कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
Ans: कविता और बच्चे दोनों अपने स्वभाव वश के साथ खेलते है खेल खेल में वे अपनी सीमा अपने परायो का भेद भूल जाया करते है जिस प्रकार एक शरारती बच्चा किसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार कविता में उलझा दी गई बात तमाम कोशिशो के बाबजूद समझने के योग्य नही रह जाती चाहे उसके लिए कितने ही प्रयास किये जाते है वह शरारती बच्चे की तरह हाथो से फिसली रहेती है प्रेमयुक्त आचरण एव शब्दों से बिगड़ी बात मनानी भी चाहिये I
Q4 कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
Ans: कविता कालयजी रहेती है उसका मूल्य शाशवत होता है ये जब भी पढ़ी जाया करती है तब पाठको को आनंद से रखती है जेसे सर्दियों पूर्व लिखा गया सूर तुलसी का काव्य आज भी उतना आनन्द प्राप्त करता है जितना अपने समय में देता रहेता है जबकि फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते है और शोभाहीन होकर अपनी सुन्दरता एव अस्तिव खो दिया करते है I
Q5 भाषा को ‘सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय हैं?
Ans: भाषा को सहूलियत से बरतने का आशय है सीधी , सरल एव सटीक भाषा के प्रयोग से है भाव के अनुसार उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाले लोग ही बात के धनी माने गये है I
Q6 बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती हैं? कैसे?
Ans: बात और भाषा दोनों परस्पर जुड़े रहते है किन्तु कभी कभी कवि लेखक आदि अपने बात को प्रभाव ढग से बताने के लिए अपनी भाषा को ज्यादा ही अलकृत बना रहेता है या शब्दों के चयन में उलझ जाया करते है भाषा के चक्कर में वे अपनी मूल बात को प्रकट ही नही हो पाता है क्षोता या पाठक उनके शब्द जाल में उलझ कर रह जाते है और सीधी बात भी टेढी होया करती है I
Q7 बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों/मुहावरों से मिलान करें।
बिंब/मुहावरा
विशेषता
(क) बात की चूड़ी मर जाना
कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
(ख) बात की पेंच खोलना
बात का पकड़ में न आना।
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना
बात का प्रभावहीन हो जाना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना
बात में कसावट का न होना।
(ङ) बात का बन जाना
बात को सहज और स्पष्ट करना
Ans: बिब/ मुहावरा
सही विशेषता
बात की चूड़ी मर जाना
बात का प्रभावहीन हो जाना
बात के पेच खोलना
बात को सहज और स्पष्ट करना
बात का शरारती बच्चे की तरह ठोक देना
बात का पकड़ में न आना
पेच को कील की तरह ठोक देना
बात में कसावट का होना
बात का बन जाना
कथ्य और भाषा का सही सामजस्य बनना