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Q1 लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है?
Ans: लेखक के अनुसार जिस प्रकार प्रजापति दुनिया की रचना अपनी इच्छा के अनुसार करता था वेसे ही कवि भी दुनिया को अपने अनुसार बदल जाते थे उसके अनुसार दुनिया को बदलने की शक्ति प्रजापति कबी भी दुनिया को बदल देता था I
Q2 साहित्य समाज का दर्पण है' इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं?
Ans: (क) साहित्य में यदि ताकत होती तो संसार को बदलने की सोच तक न उठती थी I
(ख) ट्रेजडी को दिखाते समय मनुष्य को असल ट्रेजडी से कुछ अधिक दिखाया जाता था यही बात इसका खण्ड करती थी I
(ग) कवि अपनी रूचि के अनुसार संसार को बदलता रहता था अत ऐसा साहित्य समाज का दर्पण नही हो सकता था जहा पर कवि की रुचिता चले थी संसार किसी की रुचिता नही थी I
Q3 दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
Ans: प्राय दुलभ गुणों का समावेश एक ही व्यक्ति में होना असभव होता था ऐसा व्यक्ति ढूढकर भी नही मिलता था कवि के अंदर ऐसी श्रमता होती थी कि वह ऐसे गुणों से युक्त पात्र का निर्माण कर सकता था यह मात्र मनोरंजन के लिए नही होता था इसके पीछे खास उधेश्य होता था वह उधेश्य था दिशाहीन मनुष्य को दिशा दिखाना था तो हमारा उधेश्य समाज के आगे आदर्श पात्र रखना था यह समाज के आगे आदर्श पात्र रखना था I
Q4 'साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है। वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है।'' स्पष्ट कीजिए।
Ans: साहित्य की रचना के पीछे एक नही अनेक कारण थे वह थके हुए मनुष्य के लिए विश्रति के साथ साथ आगे बढने के लिए उत्साहित भी करता था समाज को नई राह देना था मन को शाति प्रदान करना था उदासी को प्रसन्नता में बदल देना था सड़ी गली परपराओ के स्थान पर नई परपराओ को मार्ग देना था तथा मनुष्य में पुन उत्साह का संचार करना था I
Q5 ''मानव संबंधों से परे साहित्य नहीं है।'' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
Ans: एक कवि या लेखक मानव था मानव सबधो से वह स्वय घुला मिला होता था ऐसा कोई साहित्यकार नही था जो मानव सबधो से युक्त न था मनुष्य के जीवन का आधार ही ये मानव सबध था कोई किसी का मित्र था तो कोई माता पिता कोई भाई बहन पुत्र पुत्री इत्यादि ही मानव सबधो की एक थी अत इस कारण साहित्य का निर्माण करता था साहित्य से इन्हें अलग करना सभव नही था I
Q6 'पंद्रहवीं-सोलहवीं' सदी में हिंदी-साहित्य ने कौन-सी सामाजिक भूमिका निभाई?
Ans: इस काल में जितना उच्चकोटि का साहित्य मिलता था उतना शायद ही और किसी युग में मिले थे इस समय में सबसे अधिक संत कवि थे ये कवि मात्र भक्ति के कारण उदय नही हुए है समाज में बाहरी शासको के शासन से जो अशांति असतोष , दुःख , कष्टों , तथा जाति भेदभाव आड़बरो इत्यादि के कारण उत्पन्न हुए है तब ऐसे संत कवियों का उदय हुआ जिन्होंने न केवल जनता को सुख दिया अपितु समाज में व्याप्त इन कुसगतियो को हटाने का प्रयास किया था I
Q7 साहित्य के 'पांचजन्य' से लेखक का क्या तात्पर्य है? 'साहित्य का पांचजन्य' मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है?
Ans: पाचजन्य कृष्ण के शंक का नाम है इसकी विशेषता है कि इसे फूका एक स्थान से जाता है और ध्वनिया पाँच स्थानों से बाहर आती है लेखक ने साहित्य के पांचजन्य कहकर साहित्य की विशेषता का वर्णन किया था इसके अतिरिक्त यह मनुष्य को जीवन रुपी युद्धभूमि में लड़ने के लिए प्रेरित करता था I
Q8 साहित्यकार के लिए स्रष्टा और द्रष्टा होना अत्यंत अनिवार्य है, क्यों और कैसे?
Ans: साहित्यकार के लिए आवश्यक गुण था उससे स्रष्टा तथा द्रष्टा दोनों गुणों का आवश्यक था स्रष्टा में वह नई रचनाओं कि स्रष्टि करता था द्रष्टा से वह समाज में व्याप्त सुश्र्म से सुश्र्म समस्या को देखने की श्रमता रखता था इस तरह वह समाज में व्याप्त प्रत्येक समस्या पर पेनी द्रष्टि रखता था और उसे समाप्त करने के लिए नई रचनाओं का निर्माण करता था यह रचना उन समस्याओं की जड़ पर प्रहार करती थकी और समाज में व्याप्त असंगति को समाप्त करती थी I
Q9 कवि-पुरोहित के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
Ans: पुरोहित आम जनता के आगे चलकर उनका मार्ग दर्शन करता था वह जनता को जेसा जेसा निर्देश देता था वेसे ही आम जनता करती थी इस तरह वह जनता को पूजा निर्देश देकर उनके जीवन में आए कष्टों का निवारण करता था कवि पुरोहित भी ऐसा ही करता था वह आम जनता के जीवन में परिवर्तन की चाह को पूरा करने के लिए उनका दिशा निर्देश करता था I
Q10 सप्रसंग सहित व्याख्या कीजिएः(क) 'कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें, पर ऐसी आकृति ज़रूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं।'
(ख) 'प्रजापति-कवि गंभीर यथार्थवादी होता है, ऐसा यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई हैं।'
(ग) 'इसके सामने निरुद्देश्य कला, विकृति काम-वासनाएँ, अहंकार और व्यक्तिवाद, निराशा और पराजय के 'सिद्धांत' वैसे ही नहीं ठहरते जैसे सूर्य के सामने अंधकार।'
Ans: (क) प्रसग – प्रस्तुत पक्तिया रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निबध यशासमे रोचते विश्रम से अवतरित था प्रस्तुत पक्ति में कवि द्वारा रचित स्रष्टि के विषय में लेखक अपने विचार व्यक्त करता था व्याख्या लेखक कहता था कि एक कवि द्वारा रचना के समय जो कल्पना की जाती थी वे बिना आधार के नही होती थी अथार्त वह जो देखता था समझता था सोचता था उसे आधार बनाकर एक नई स्रष्टि की रचना करता था अब प्रश्न उठता था कि उसे ऐसी स्रष्टि की रचना करने की आवश्यकता क्यों पड़ी थी तो इसका उत्तर था कवि जहां कल्पनालोक का वासी था वही हकीकत के धरातल में भी उसके पैर भली प्रकार से टिके होते थे I
(ख) प्रसग : प्रस्तुत पक्तियाँ रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निबध यशासमे रोचते विश्रम से अवतरित था प्रस्तुत पक्ति में कवि के गुणों पर प्रकाश डाला गया था I व्याख्या : लेखक के अनुसार संसार की रचना करने वाला कवि गभीर यथार्थवादी होता था वह उसे गभीरता से लेता था और अपनी रचनाओं में पूरी गभीरता से निभाता था उसके पाँव यथार्थ पर पूर्णरूप से टिके होते थे वह सच्चाई से पूरी तरह से जुडा होता था वह जानता था कि वर्तमान का यह सत्य केसे भविष्य की श्रितिज पर दिखाई देता था अथार्त वह ऐसे साहित्य की रचना करता था जो वर्तमान की सत्य घटनाओं पर आधारित होता था I
(ग) प्रंसग : प्रस्तुत पक्तियाँ रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निबध यशासमे रोकते विश्रम से अव्तरित था प्रस्तुत पक्ति में लेखक साहित्य के विषय में अपने विचार व्यक्त करता था I व्याख्या : लेखक साहित्य विशेषता बताते हुए स्पष्ट करता था कि हमारे साहित्य का उद्धेश्य मात्र मनोरंजन करना नही था वह मनुष्य को सदेव बढने की और चलते रहने की शिक्षा देता था हमारे साहित्य का गौरवशाली इतिहास इस बात का प्रमाण था हमारी इस परमपरा के समक्ष ऐसी कला
जिसमे कोई उद्धेश्य न था जो काम वासनाओं की पोषक था जिसमें अहंकार तथा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया जाता था निराशा और पराजय के भावो को पोषण करता था I