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Q1 "मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई"‐ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
Ans: ऊपर लिखित पक्ति में कवि ने देवसेना की वेदना का परिचय दिया था देवसेना स्कद गुप्ता से प्रेम करते थे जब देवसेना को इस बात का पता चलता था तो वह बहुत दुखी होती थी और वह कद गुप्त को छोड़ कर चला जाता था देवसेना कहती थी कि मैने प्रेम के भ्रम में अपने जीवन भर की अभिलाषा को रुपी भिक्षा को लुटा दिया था I
Q2 कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
Ans: आशा में मनुष्य बावला हो जाता था और आशा से मनुष्य को शक्ति मिलती थी प्रेम में तो आशा बहुत ही बावली होती थी वह जिससे प्रेम करता था उसके प्रति हजारो सपने बुनता था कि उन्हें वास्तविकता का ज्ञान ही नही है I
Q3 "मैंने निज दुर्बल..... होड़ लगाई" इन पंक्तियों में 'दुर्बल पद बल' और 'हारी होड़' में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
Ans: दुर्बल पद बल में निहित व्यजना देवसेना के बल का ज्ञान कराती थी अथार्त देवसेना अपने ब की सीमा को बहुत अच्छी तरह से जानती थी उन्हें पता था वह बहुत कमज़ोर थी इसके बाद भी वह अपने भाग्य से लद रहा था I हारी होड़ पक्ति में निहित व्यजना देवसेना जानती थी की प्रेम में उन्हें हार ही प्राप्त होती थी I
Q4 काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ......... तान उठाई।
(ख) लौटा लो .......................... लाज गँवाई।Ans: (क) इस काव्यश की विशेषता था कि इसमें समर्थि बिब बिखरा पडा था देवसेना समर्थि में डूबी हुई थी उसे वे दिन स्मरण हो आते थे जब उसने प्रेम को पाने के लिए अथक प्रयास किया है परन्तु वह असफल होती थी अब उसे अचानक उसी प्रेमी को स्वर सुनाई पड़ रहा था यह उसे चोका देता था I
(ख) इस काव्याश की विशेषता था कि इसमें देवसेना की निराश से युक्त हतोत्साहित मनोस्थिति का पता चलता था I
Q5 देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
Ans: समार्ट स्कद्गुप्त से राजकुमारी देवसेना प्रेम करती है उसने अपने प्रेम को पाने के लिए बहुत प्रयास किया था परन्तु उसे पाने में उसके सारे प्रयास असफल सिद्ध हुये थे यह उसके लिए घोर निराश का कारण है I