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Q1 अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
Ans: अगहन मास में दिन छोटे हो जाते थे और राते बड़ी हो जाती थी नागमती के लिए यह परिवर्तन बहुत कष्टप्रद थे क्योकि दिन जेसे तेसे कट जाता था परन्तु रात नही कट पाती थी रात में उसे रह रहकर प्रिय की याद सताती थी वह घर में अकेली होती थी यह स्थिति ऐसे ही थी जेसे दीपक को बाती थी दीपक की बाती पूरी रात जलती रहती थी नागमती भी वेसे ही विरहाग्नि में जल रही थी उसके पति परदेश को गए थे I
Q2 जीयत खाइ मुएँ नहिं छाँड़ा' पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Ans: नागमति का पति परदेश गया हुआ था पति की अनुपस्थिति उसे भयकर लगती थी वह पति के वियोग में जल रही थी एक स्थान पर पति के वियोग से उत्पन्न विरह को उसने बाज रूप में चित्रित किया था जिस तरह बाज अपने शिकार को नोच नोचकर का जाता था वेसे ही विरह रुपी बाज नागमती को जीवित नोच नोचकर खा रहा था उसे लगता था जेसे विरह रुपी बाज उसे अपना शिकार बनाने के नजर गडाए बेठा था I
Q3 माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?
Ans: माघ के महीने में ठंड अपने विकराल रूप में विधमान होती थी चारो और पाला अथार्त कोहरा छाने लगता था विरहिणी के लिए यह भी कम कष्टप्रद नही था इसमें विरह की पीड़ा मोंत के समान होती थी यदि पति की अनुपस्थिति इसी तरह रही थी माघ मास की ठंड उसे अपने साथ ही ले जाकर मानती थी I
Q4 वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
Ans: फागुन मास के समय वृक्षों से पतिया तथा वनों से ढाखे गिरते थे विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुःख देने वाला था चारो और गिरती पतिया उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही थी हर एक गिरता पता उसके मन में विधमान आशा को धूर्मिल कर रहा था कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आते थे I
Q5 निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग।सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख।धिन सारस होई ररि मुई, आइ समेटहु पंख।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल।तेहि पर बिरह जराई कै, चहै उड़ावा झोल।।
(घ) यह तन जारौं छार कै, कहौं कि पवन उड़ाउ।मकु तेहि मारग होई परौं, कंत धरैं जहँ पाउ।।Ans: (क) दुखी नागमती भोरो तथा कोए से अपने प्रियतम के पास संदेशा ले जाने को कहती थी उसके अमुसार वे उसके विरह का हाल शीघ्र ही जाकर उसके प्रियतम को बता थे है प्रियतम के विरह में नागमती कितने गहन दुःख भोग रही थी इसका पता प्रियतम को अवश्य लगा था वह उन्हें सबोधित करते हुए कहते थे कि तुम दोनों वहा जाकर प्रियतम को अवश्य लगा था I
(ख) प्रस्तुत पक्तियो में नागमती अपने प्रियतम तुमसे अलग होने पर मेरी दशा बहुत ही खराब हो गई थी में तुम्हारे वियोग में इतना रोई थी कि मेरी आँखों से आँसू रूप में सारा रक्त बाहर निकल गया था इसी तरह तडपते हुए मेरा सारा माँस भी गल गया था और मेरी हड्डिया शख के जेसे श्रेव्त दिखाई दे रही थी I
(ग) प्रस्तुत पक्तियों में नागमती कहती थी कि है प्रियतम में तुम्हारे वियोग से सूखती जा रही थी मेरी स्थिति तिनके के समान हो गई थी में कमजोर हो गई थी में इतनी दुर्बल हो गई थी इसी प्रकार में कमजोर होने के कारण हिल जाता था इस पर भी यह विरहग्नि मुझे राख बनाने को व्यग था I
(घ) नागमती अपने मन के दुःख व्यक्त करते हुए कहती थे कि में स्वय के तन को विरहग्नि में जलाकर भस्म कर देना चाहती थी इसी तरह मेरा शरीर को उड़कर मेरे प्रियतम के रस्ते में बिखेर देती थी I
Q6 प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
Ans: पहला पद – यह दुःख न जाने कतू जोबन जरम करे भसमतू I प्रस्तुत पद की भाषा अवधी शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया था कि भाषा प्रवाहमी और गेयता के गुणों से भरी थी भाषा सरल और सहज था इसमें दुःख दगध तथा जोबर जर में अनुप्रास अलंकार थे वियोग से उत्पन्न विरह को बहुत मार्मिक रूप में वर्णन किया गया था I
दूसरा पद – बिरह बाढ़ी भा दारुन सीऊ कपि कपि मरो लेहि हरि जीऊ I प्रस्तुत पद की भाषा अवधी थी शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया गया था कि बाशा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी थी भाषा सरल और सहज थी बिरह बाढ़ी में अनुप्रास अलंकार था I