बालकृष्ण भट्ट कृत ईमानदारी निबंध: बालकृष्ण भट्ट स्वतंत्र चेतना और प्रगतिशील विचारों के निबंधकार हैं। वे हिंदी नवजागरण के ऐसे जागरूक रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश के उद्धार के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों से लोहा लिया था। वे स्वयं कहते हैं कि “मेरा उद्देश्य देश की भलाई है इसलिए मैं प्रकट हुआ हूं ,मैं चाहता हूं कि समय–समय पर आपके सम्मुख प्रकट होकर देशवासियों की वर्तमान शोचनीय दीन–हीन दशा से आपको अवगत कराकर उसे सर्वसाधारण के हित के लिए प्रेरित करूँ।“
बालकृष्ण भट्ट राष्ट्रीयता के निर्माण की मुश्किलों को पहचान कर उन पर लेखकीय हस्तक्षेप करते हैं।
बालकृष्ण भट्ट के निबंध का संक्षिप्त परिचय
भारतेंदु युग के श्रेष्ठ निबंधकारों में इनकी गणना होती है। उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, साहित्यिक और नैतिक विषयों पर अपने निबंध लिखें। भारतेंदु की व्याख्यात्मक तथा विचारात्मक शैली को विकसित किया है। इनके निबंध ‘ब्राह्मण पत्र‘ में छपा करते थे। उनके निबंधों में प्रगतिशील और सुधारवादी दृष्टिकोण दिखलाई पड़ता है। उनकी निबंध शैली की विविधता ने अनेक परवर्ती निबंध लेखकों को भी प्रभावित किया है। भट्ट जी ने यूं तो भावात्मक, वर्णनात्मक, कथात्मक, विचारात्मक मूल्यपरक इत्यादि सभी प्रकार के निबंध लिखे हैं किंतु उनके विचारात्मक निबंध अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्हें 17 वी शताब्दी के पश्चिमी निबंधकार जोसफ एडिशन (जो बुद्धि प्रधान निबंध लिखने के लिए विख्यात थे) के सादृश्य हिंदी का एडिसन भी कहा जाता है।
इनके निबंधों में उनके पांडित्य तथा लोक प्रचलित भाषा का अद्भुत समन्वय हुआ है। डॉ रामविलास शर्मा कहते हैं कि “साहित्यिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर वह गंभीरतापूर्वक विचार करते थे और वैसे ही गंभीरता से वह अपने सुझाव भी देते थे“। इसलिए उनकी शैली बहुधा आचार्य शुक्ल की याद दिलाती है। निबंधों में परिभाषा देने की प्रवृत्ति सर्वप्रथम भट्ट जी में ही मिलती है यह उनकी एक खास विशेषता है। भट्ट जी अपने युग के श्रेष्ठ क्रांतिकारी विचारक थे।
उनके व्यक्तित्व में कबीर की अक्खड़ और फक्कड़ प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। भट्ट जी के समय का भारत घोर अंधकार में डूबा हुआ था। उस समय बाल विवाह, सहभोजन का विरोध, धर्मांध विचारों की निंदा, परिवर्तन विमुक्त राजनीतिक क्रियाशीलता का विरोध, जाति पाति, छुआछूत आदि का बोलबाला था। आत्म गौरव का अभाव था। मध्य वर्ग का उदय हो चुका था। उसमें विकास की गति धीमी थी। भट्ट जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सदियों की समस्याओं पर प्रकाश डाला है। उन्होंने 300 निबंधों को हिंदी प्रदीप में छापा, विषय वस्तु और शैली दोनों ही दृष्टि से इनकी रचनाओं में विविधता देखने को मिलती है। बच्चन सिंह कहते हैं “वे रूढ़ियों के परम शत्रु थे और देश की भलाई करना उनका मुख्य उद्देश्य था।“
ईमानदारी निबंध का प्रतिपाद्य और संदेश
ईमानदारी निबंध में भी मानव जीवन में ईमानदारी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए वह अपने विचार अभिव्यक्त करते हैं। बेंजामिन फ्रैंकलीन द्वारा कही गई है बात Honesty is the best Policy अर्थात ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है इस कथन को अपने प्रस्तुत निबंध में तर्क के आधार पर स्पष्ट करते हुए दिखाई देते हैं। वे कहते हैं मनुष्य को अपने काम में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यवहार में सफाई या ईमानदारी का निर्वाह करना अत्यंत आवश्यक है। व्यवहार में सफाई से उनका तात्पर्य है तन–मन, वचन और कर्म की शुद्धता से है। इसके अभाव में हमें ना तो कर्म क्षेत्र में हीं और न ही रोजगार में और न ही अपने जीवन में प्रतिष्ठा मिलेगी और न ही हम प्रसन्न रह सकते हैं।
इसलिए वह कहते हैं की “ईमानदारी के बिना मनुष्य अपने रोजगारी अपने कारोबार में किसी तरह प्रतिष्ठा या सरसब्जी नहीं हासिल कर सकता।” मनुष्य अपने गुणों से करामात करने में सक्षम है और यही चमत्कार वह अपने जीवन में भी ईमानदार रहकर कर सकता है।
निबंध में नैतिकता और ईमानदारी की भूमिका
भारतीय समाज में पहले व्यापार ईमानदारी के भरोसे ही चलता था। जहां लोग पढ़े लिखे ना होकर भी हजारों लाखों का लेनदेन केवल व्यक्ति विशेष की ईमानदारी से प्रभावित होकर बिना किसी मीन मेख के खुशी से दे देते थे। जैसे–जैसे सरकारी कानून लागू हुए और लोगों के अंदर बेईमानी ने पैर पसारने शुरू किए। तब से लेन–देन में जालसाजी और फरेब शामिल हो गया। भट्ट जी कहते हैं कि कोई काम छोटा या बड़ा, अच्छा या बुरा नहीं होता। यदि हम अपने कर्म के प्रति ईमानदार होंगे तो निश्चित रूप से हमें समाज में प्रतिष्ठा और प्रशंसा मिलेगी।
वे कहते हैं कोई भी काम हो जो ईमानदारी से किया जाए और उचित लाभ के अतिरिक्त एक पैसा बेईमानी का उसमें नहीं आया हो वह सर्वथा प्रतिष्ठा और सराहना के योग्य है। छोटे से छोटा काम ईमानदारी से किया जाए तो कभी बुरा नहीं है इस प्रकार यदि हमारा लक्ष्य ऊंचा है तो हम हर असंभव से दिखने वाले काम को भी पूरा कर सकते हैं। भट्ट जी कहते हैं कि मनुष्य अपने शरीर के अंगों को जैसे हाथ पाव इत्यादि को जल से शुद्ध कर सकता है पर मन की शुद्धता के लिए ईमानदारी अति आवश्यक है और मन केवल सत्य से शुद्ध होता है।
जो मनुष्य कठिन परिश्रम से कभी मुंह नहीं मोड़ता जिसका मन हमेशा अटल रहता है ,वह मिट्टी को भी सोना बनाने की योग्यता रखता है। उन्होंने इतिहास से उदाहरण देते हुए यह बताया है निकृष्ट काम करने वाले भी अपनी ईमानदारी और तत्परता के कारण ऊंचा पद प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि समाज में उनकी ईमानदारी का डंका बोलता है। ईमानदार व्यक्ति बेईमानी से अर्जित सोने को भी मिट्टी तुल्य समझता है। उसका मानना है कि बेईमानी से अर्जित अनुचित लाभ सोना भी है तो मिट्टी का ठेला है। भट्ट जी जीवन के हर क्षेत्र में ईमानदारी के महत्व को प्रतिपादित करते हैं। गाढ़ी मेहनत, ईमानदारी और मुस्तैदी यह तीन बातें किसी भी काम के लिए बहुत जरूरी है। लेखक के अनुसार बहुत से लोग अपनी बदकिस्मती का रोना सिर्फ इसलिए रोते हैं क्योंकि वे कठोर परिश्रम से पीछे हट जाते हैं। कर्म के प्रति सजग नहीं होते और मन से हार मान बैठते हैं।
इस बात को समझाने के लिए उन्होंने अंग्रेजी की कहावत का हवाला देते हुए कहा A barking dog is more useful than sleeping lion अर्थात भोंकता हुआ कुत्ता ज्यादा काम का है सोते हुए शेर से। यहां पर सोता हुआ शेर प्रतीक है उन व्यक्तियों का जो तमाम योग्यताएं ताकत के बावजूद भी कर्म के प्रति निष्ठावान, तत्पर और ईमानदार नहीं होते। वे अपने झूठे शक्ति प्रदर्शन में विश्वास रखते हैं और कर्म नहीं करते। ऐसी स्थिति में अपने कर्म के प्रति निरंतर सजग, निष्ठावान, कड़ी मेहनत करने वाला ईमानदार व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण होता है फिर चाहे वह कितना ही छोटा, निर्बल, न्यून योग्यता से युक्त ही क्यों ना हो अपने किसी भी काम में मनुष्य विशेष को तभी सफलता मिलती है जब उस काम से जुड़ी हुई छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखता है। मनुष्य जब मेहनत से मुंह नहीं मोड़ेगा और हर परिस्थिति में अपना कर्म करेगा तो निश्चित रूप से सफलता उसके कदम चुमेगी और जो व्यक्ति अपने काम को व्यवस्थित ढंग से पूरा करता है वह 1 घंटे के काम को 20 मिनट में करने की क्षमता रखता है।
अतः भट्ट जी ने छोटी से छोटी बात का भी हिसाब किताब रखने के बात इस निबंध में कही है। उनके अनुसार व्यक्ति चाहे कितना भी गुणी, नेकचलन और धर्मशील हो लेकिन यदि वह आदि से अंत तक काम को पूरा नहीं करता तो वह लोगों में विश्वास का पात्र नहीं बन सकता। अतः दस काम अधूरे छोड़ने की बजाय हमें एक काम को पूरा कर लेना अधिक लाभदायक होगा।
ईमानदारी निबंध का समाज पर प्रभाव और प्रासंगिकता
समाज में ईमानदार व्यक्ति जितना लोगों का विश्वास पात्र होता है उतना कोई बड़े से बड़ा विद्वान, धनाढ्य व्यक्ति नहीं हो सकता यदि उसके व्यवहार में सच्चाई नहीं है तो। समाज में उसको वह सम्मान नहीं मिलेगा जो एक ईमानदार व्यक्ति को मिलता है बेईमानी से कमाए हुए धन पर हम भले ही भौतिक वैभव प्राप्त करके अच्छा जीवन जी ले लेकिन बेईमानी का परिणाम बहुत बुरा होता है और यदि हमारे जीवन काल में उसका दुष्परिणाम ना देखने को मिले तो निश्चित रूप से हमारी संतानों को उसका दुष्प्रभाव भोगना ही पड़ता है और यहां पर वह कहते हैं कि यह भी सच है कि “जितना पुरखों ने राज किया है उतना ही लड़कों ने भीख मांगी है” बुरे काम का बुरा नतीजा हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल हमें भोगना पड़ेगा। ईमानदार व्यक्ति को देव मूर्ति मानकर भट्ट जी ने उन्हें शत–शत प्रणाम किया है। वह कहते हैं कि आज की विपरीत परिस्थितियों में वही व्यक्ति देव तुल्य और पूजनीय आदरणीय हैं जो मनसा वाचा कर्मणा व्यवहार से शुद्ध एवं पाक छवि वाला है अर्थात ईमानदार है।
इस ईमानदारी निबंध में निबंधकार ने ईमानदारी मूल्य के महत्व को प्रतिपादित करते हुए देशवासियों से अपील की है कि हमारा देश तभी विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है जब इस देश का हर नागरिक हर मनुष्य ईमानदारी के गुण को वहन करेगा। थॉमस जेफ्रान्स ने कहा है बुद्धिमानी की किताब में ईमानदारी सबसे पहला पाठ है। हमें जिंदगी में न जाने कितने पाठ पढ़ने पड़े हैं लेकिन उसमें ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण पाठ है और मनुष्य को अपने जीवन में उसे अमल में लाना चाहिए तभी वह समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकेगा। भाषा की दृष्टि से यह निबंध बड़ा ही उत्कृष्ट है खड़ी बोली का आरंभिक रूप इसमें देखने को मिलता है। यथा स्थान उर्दू और फारसी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। अंग्रेजी की कहावतें और संस्कृत के कथनों का भी इसमें प्रयोग किया गया है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि बालकृष्ण भट्ट जी द्वारा रचित ईमानदारी निबंध उनके उत्कृष्ट भाव प्रधान ,मूल्य प्रधान, विचारात्मक निबंधों में श्रेष्ठ है जो आज भी मानव को ईमानदारी का महत्व प्रतिपादित करते हुए जीवन में ईमानदार बने रहने का संदेश देता है। भट्ट जी के निबंधों में विचार और भाव शिल्प और भाषा से जुड़कर प्रभावपूर्ण हो जाते हैं। उनकी शैली में विविधता है ,उनके मुहावरे बातचीत का रूप धारण कर लेते हैं। अपने निबंधों के माध्यम से उन्होंने नया भाषा संस्कार रचने की कोशिश की है ।शब्द चयन के प्रति वे सजग हैं इनके निबंधों में विचारों की गहनता ,विषय की विस्तृत विवेचना, गंभीर चिंतन के साथ एक अनूठापन भी है । गद्य मैं पद्य लिखने की परंपरा का सूत्रपात भी बालकृष्ण भट्ट जी ने किया निबंध शैली की दृष्टि से ईमानदारी एक सफल निबंध है ।
डॉ अनु शर्मा
हिंदी विभाग
लक्ष्मीबाई कॉलेज
बी कॉम हिंदी ब के पाठ्यक्रम के लिए विशेष।
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