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अरुण यह मधुमय देश हमारा व्याख्या – जयशंकर प्रसाद की कविता का विश्लेषण

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता अरुण यह मधुमय देश हमारा व्याख्या (Arun Yah Madhumay Desh Hamara written by JaiShankar Prasad)। जानें इस कविता के भाव, अर्थ और भारतीय संस्कृति पर इसके प्रभाव के बारे में।

अरुण यह मधुमय देश हमारा: जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। छायावाद के आलोक स्तंभों में प्रसाद का विशिष्ट स्थान है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रसाद जी ने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध सभी विधाओं में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रसाद में भावना, विचार और शैली तीनों की पूर्ण प्रौढ़ता मिलती है, जो विश्व के बहुत कम कवियों में संभव है। व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही दृष्टियों से प्रसाद और उनका काव्य अद्वितीय है।

जयशंकर प्रसाद: आधुनिक हिंदी कविता के स्तंभ

प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं कि “बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रसाद शीर्षस्थ लेखकों में से हैं। वे एक पारदर्शी लेखक थे, कई बार उन्होंने स्वयं का अतिक्रमण किया। वह भारत की सच्ची संस्कृति के पक्षधर थे। वे मानवीय प्रेम और जीवन मूल्य की रक्षा करना चाहते थे, उन्हें पाखंड से घृणा थी। समाज के भीतर सद्भाव की स्थापना, नारी- उत्कर्ष, राष्ट्रप्रेम, करुणा का राज्य, उनका पक्ष था। सत्य की खोज के उपासक थे- जयशंकर प्रसाद।”
(आधुनिक हिंदी साहित्य के कीर्ति स्तंभ पृष्ठ 47)

यूं तो प्रसाद जी कवि रूप में अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं ‘प्रेमपथिक’, ‘झरना’, ‘आंसू’, ‘लहर’ और ‘कामायनी’ उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। वहीं पर ‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’, ‘गुंडा’, ‘इंद्रजाल’ जैसी कहानियाँ, ‘काव्य और कला’ तथा अन्य निबंध उनकी गद्य कला के बेजोड़ नमूने हैं।

जयशंकर प्रसाद का आविर्भाव ऐसे समय हुआ, जब देश का राष्ट्रीय आंदोलन पनप रहा था। राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना की लहर जनमानस में फैल रही थी। इसके साथ ही सामाजिक विद्रूपता यह थी कि पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का अंधानुकरण प्रारंभ हो गया था। भारतीय संस्कृति तिरस्कृत और पददलित हो रही थी। ऐसे समय में प्रसाद जी के लिए आर्य संस्कृति के उद्धारक तथा सांस्कृतिक जागरण के अधिष्ठाता के रूप में अपनी आवाज बुलंद करना आवश्यक हो गया था। इसके लिए उनके नाटक सशक्त माध्यम बने। इतिहास और कल्पना के योग से उन्होंने जो नाटक लिखे उनमें प्रेम और सौंदर्य के मधुर चित्र हैं। अतीत के माध्यम से आधुनिक समस्याओं का उन्होंने समाधान निकालने का सुंदर प्रयास किया है। देशभक्ति, राष्ट्रीयता साम्राज्यवादी शोषण का विरोध, जन जागरण और सामाजिक समानता की भावना, मानवीय संवेदना और मूल्यों की स्थापना इनकी रचनाओं का विशेषकर नाटकों का प्रमुख स्वर कहा जा सकता है।

हिंदी साहित्य का इतिहास

व्यासमणि त्रिपाठी “हिंदी साहित्य के इतिहास” में कहते हैं-

“देशवासियों में आत्मगौरव, उत्साह, बल एवं प्रेरणा के संचार के लिए प्रसाद जी ने अतीत का गौरव गान किया इसके लिए उन्होंने भारतीय इतिहास और पुराणों में से महाभारत के बाद से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक का वह समय लिया जब विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त कर भारतीय वीर अपने गौरव और गर्व की रक्षा कर रहे थे।””

इसी क्रम में डॉक्टर नगेंद्र भी कहते हैं “परतंत्र देश का लेखक यदि वर्तमान की क्षतिपूर्ति अपने गौरवमयी अतीत में करता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।”

“चंद्रगुप्त” प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है जो 1931 ई. में लिखा गया। इसकी कथावस्तु सिकंदर के आक्रमण तथा मगध में नंद वंश के पराभव एवं चंद्रगुप्त मौर्य के राजा बनने की घटनाओं पर आधारित है। चंद्रगुप्त नाटक में चाणक्य, चंद्रगुप्त, अलका, सहरण जैसे पात्र हैं जो कर्मण्यता, साहस, देशभक्ति और स्वदेशानुराग की प्रेरणा देते हैं। प्रसाद जी ने साहित्यकार के दायित्व का निर्वहन करते हुए भारतीय इतिहास के उस कालखंड को नाटकीय घटनाक्रम से प्रस्तुत किया है जिसमें आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त के नेतृत्व में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा। इस नाटक के गीत बहुत प्रसिद्ध हैं क्योंकि उनमें राष्ट्रीयता का स्वर सशक्त ढंग से मुखरित हुआ है। एक अलका का गीत और दूसरा कार्नेलिया का गीत।

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से

अलका जनसाधारण को देश की रक्षा के लिए सन्नद्ध करती हुई गाती  है –

“हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती ।।
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो ।।”

वहीं दूसरी ओर कार्नेलिया कहती है कि “मुझे इस देश से जन्मभूमि के समान स्नेह होता जा रहा है। यह स्वप्नों का देश है, यह त्याग और ज्ञान का पालना, यह प्रेम की रंगभूमि -भारत भूमि क्या भुलाई जा सकती है? कदापि नहीं। अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि हैं, किंतु यह भारत मानवता की भूमि है।”

अरुण यह मधुमय देश हमारा कविता का केंद्रीय भाव

कार्नेलिया सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की पुत्री है। सिंधु के किनारे गीक्र शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठी हुई कहती है-

“सिंधु का यह मनोहर तट जैसे मेरी आंँखों के सामने एक नया चित्रपट उपस्थित कर रहा है। इस वातावरण से धीरे-धीरे उठती हुई प्रशांत स्निग्धता जैसे हृदय में घुस रही है। लंबी यात्रा करके जैसे मैं वहीं पहुंँच गई हूंँ। जहांँ के लिए चली थी। यह कितना निसर्ग सुंदर है। कितना रमणीय है। हांँ, वह आज वह भारतीय संगीत का पाठ देख लूँ भूल तो नहीं गई।”

तब वह यह  गीत गाती है –

“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुंँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”

भारत में सूर्योदय का दृश्य बड़ा ही रमणीय है। प्रातः काल सूर्य जब आकाश में उदित होता है तो चारों और अरुणिम अर्थात लालिमा युक्त प्रकाश फैल जाता है।

भारत की सांस्कृतिक महत्ता

यहांँ सूर्य प्रतीक है- ज्ञान का क्योंकि भारत भूमि पर ही सर्वप्रथम ज्ञान, योग, सभ्यता, अध्यात्म, दर्शन का जन्म हुआ जिससे संपूर्ण विश्व आलोकित हुआ है। साथ ही यहाँ इस ओर भी संकेत किया गया है कि इतना समृद्ध शाली देश होने के बावजूद भी भारतीयों के मन में दया, प्रेम, करुणा के भाव विद्यमान हैं अर्थात भारतवासियों के मन में जो बंधुत्व और प्रेम, अपनत्व का भाव है वही उनकी संस्कृति को मधुमय  बनाता है अर्थात् उनकी प्रेम युक्त बंधुत्व की भावना ही सबके जीवन में मिठास घोलती है। इसलिए यहाँ भारत को “मधुमय देश” कहकर संबोधित किया गया है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यहाँ  पर आने वाला अनजान व्यक्ति विशेष भी अपने आप को कभी पराया महसूस नहीं करता।

भारत की शरणागत-वत्सलता की ओर संकेत करते हुए प्रसाद जी ने कहा है कि भारत अनंत काल से बाहर से आए हुए लोगों का आश्रय स्थल रहा है। अनेकानेक विदेशियों, शरणार्थियों ने भारत में आकर शरण ग्रहण की है और भारत ने उन्हें हृदय से अपनाया है। या यूँ कहें कि भारतवासियों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने अनजान विदेशियों को भी अपना बंधु समझ कर उन्हें गले से लगाया जिन्हें सबने ठुकरा दिया, उसे हमने गले से लगाया है। भारतवासी अत्यंत संवेदनशील, भावुक प्रवृत्ति के हैं वे दूसरों के दुखों को देखकर करुणा से द्रवित हो जाते हैं और उन्हें अपना लेते हैं, आश्रय देतें हैं इसलिए यहाँ आकर अनजान लोगों को भी सहारा मिल जाता है।

“सरल तामरस गर्भ विभा पर,
नाच रही तरुशिखा मनोहर ।
छिटका जीवन हरियाली पर,
मंगल कुमकुम सारा।”

प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण

प्रात:काल सूर्य आकाश में उदित होने पर ऐसा लगता है मानो चारों और जागरण के गीत गुंजित हो उठे हैं। समस्त प्रकृति जीव-जंतु, पेड़-पौधे, फूल-पत्तियांँ, जाग उठते हैं। सूर्य की किरणें पेड़ की फुनगी पर नृत्य करती हुई और कमल की पंखुड़ियों पर अपनी आभा बिखरती हुई नजर आती हैं अर्थात पेड़ की सबसे ऊंँची शाखा पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो पेड़ के पत्तों पर स्वर्णिम आभा तो फैल जाती है साथ ही साथ जब हवा चलती है और पत्तों में हलचल होती हैं तो ऐसा लगता है मानो सूर्य की किरणें वृक्ष की सबसे ऊंँची शिखा पर नृत्य कर रही हों। कवि ने यहाँ बड़े ही मनोहारी ढंग से प्रकृति का चित्रण किया है। इतना ही नहीं सूरज तालाब में खिले हुए कमल की पंखुड़ियों पर अपनी आभा बिखेकर उसके सौंदर्य को भी कई गुना बढ़ा देता है।

भारत भूमि शस्य श्यामला है। चारों ओर छायी हुई हरियाली उसकी समृद्धि और संपन्नता का परिचायक है। प्रातःकालीन सूर्य ने मानो (भारतीयों के) जीवन रूपी हरियाली पर अपना सारा मंगल कुमकुम छिटका दिया हो। सरल शब्दों में कहें तो भारत धन्य धान्य से सम्पन्न देश है, यहाँ चारों ओर लहराते खेत खलिहान, यहाँ की हरीतिमा, उसकी संपन्नता को बयां करती है। जब सूर्य की रक्तिम किरणें इन पर पड़ती हैं, तो ऐसा लगता है मानो सूरज ने अपना सारा मांगलिक कुमकुम भारतीयों पर बिखेर दिया हो अर्थात भारतवासियों के हरित समृद्ध जीवन को और खुशहाल बना दिया हो। वास्तव में यहाँ के लोग बहुत परिश्रमी हैं, जो बंजर धरती को भी हरा-भरा बनाने की क्षमता रखते हैं। यहाँ पर जीवन हरियाली पर मांगलिक कुमकुम छिटकने का बड़ा ही मनोहारी चित्रण कवि ने किया है। भारत की समृध्दि में मांगलिकता का भाव निहित है।

“लघु सुरधनु से पंख पसारे,
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुंँह किए,
समझ नीड़  निज  प्यारा।।””

आकाश में विचरते इंद्रधनुषी पंखों वाले पंछी, मलय पर्वत से आने वाले शीतल-सुगंधित पवन (मलय पर्वत पर चंदन के वृक्ष होने के कारण उस ओर से आने वाली हवा शीतल और सुगंधित होती है।) का आश्रय लेकर जिस दिशा (भारत की ओर) में मुंँह किए हुए उड़ते दिखाई देतें हैं तो ऐसा लगता है मानो वे अपने प्यारे घोंसले की ओर जाने को उत्सुक हैं। यहाँ पर हम खगों को विदेशियों का प्रतीक कह सकते हैं और वह जिस ओर से मुंँह करके अर्थात एक विश्वास के साथ भारत की ओर निहार रहे हैं, देख रहे हैं, उड़ते हुए चले आ रहे हैं उससे ऐसा लगता है मानो उनके हृदय में यह भरोसा है कि भारत में, उन्हें आश्रय जरूर मिलेगा। भारत ही उनका प्यारा घर है। अतः पूर्ण विश्वास के साथ वे भारत की तरफ चले आ रहे हैं। यह देश उन्हें “नीड़ निज प्यारा “प्रतीत होता है।

“बरसाती आँखों के बादल,
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की,
पाकर जहाँ किनारा।।”

मानवतावादी दृष्टिकोण

जिस प्रकार वर्षा ऋतु में, बारिश होने पर दग्ध एवं तप्त धरती प्रकृति, जीव -जंतुओं की प्यास बुझ जाती है। उसी प्रकार भारतवासियों के हृदय भी करुणा के जल से भरे हुए हैं जो किसी भी प्राणी मात्र को कष्ट में या दुख में नहीं देख सकते और किसी का कष्ट और दुख सुनकर ही उनकी आँखों में करुणा के बादल उमड़ पड़ते हैं और उनकी आँखों से अश्रु प्रवाहित होने लग जाते हैं अर्थात भारतवासी दुखी जनों को सांत्वना देने में, थके हुओं को सहारा देने में समर्थ हैं। उनकी यह संवेदनात्मकता, परदुःखकाता उनके मन में दया और करुणा के भावों का संचार करती है। उनके हृदय में विद्यमान करुणा रूपी नीर, उनकी आँखों में बरसाती बादलों- सा, आंँसुओं के रूप में, सदैव छाया रहता है।।

अनन्त, अथाह, अशांत महासागर भी भारत की सीमाओं से टकराकर शांत हो जाता है। ऐसा लगता है मानो विचलित सागर को भी, भारत की सीमाओं का, स्पर्श कर के ही शांति का आभास होता है। कवि का कल्पना कौशल अद्भुत है। भारत एक शांतिप्रिय देश है और विश्व में भारत की छवि सदैव शांतिदूत की ही रही है। यहाँ पर सागर और किनारों के माध्यम से यह बात प्रसाद जी ने बहुत सुंदर ढंग से चित्रित की है। भारत का समुद्र तट बहुत विशाल है अरब महासागर, हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तीनों की ओर से हमारा देश महासागरों से घिरा हुआ है लेकिन जब इन महासागरों की लहरें भारत के तट से टकराती हैं और शांत हो जाती हैं तो ऐसा लगता है मानो उस अशांत समुंद्र को भी यहाँ आकर ही सहारा मिला है। असीम समुद्र को भी यहाँ आकर किनारा मिलता है। भूले भटके लोगों को, यहाँ विश्राम मिलता है, मंजिल मिल जाती है।

“हेम कुम्भ ले उषा सवेरे,
भरती  ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब,
जगकर  रजनी भर तारा।।”

ऊषा रूपी नायिका सूर्य रूपी हेम कुम्भ (सोने का घड़ा) लेकर प्रातःकाल भारतीयों पर सुख ढुलकाती हुई प्रतीत होती है। सूरज उदित होने पर चारों ओर, प्रकृति, जीव- जंतु, मानव प्रसन्न दिखाई देते हैं ऐसा लगता है मानो ऊषा नागरी ने सभी भारतीयों पर सुख का घड़ा उड़ेल दिया हो। इतना ही नहीं जैसे -जैसे सूर्य आसमान में चढ़ता है  वैसे-वैसे आकाश में टिमटिमाते तारे छिपने लगते हैं। इस दृश्य का मनभावन वर्णन करते हुए कवि  कहते है कि ऐसा लगता है मानो तारे रात भर जागे हैं और जागने के कारण अब छुपने के क्रम में धूँधले होते जा रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे नींद में ऊँघ रहे हो। यहाँ  उषा का मानवीकरण किया गया है। सूर्य को सोने का घड़ा कहकर उसका सुंदर रूपक कवि ने बांँधा है।

इस प्रकार प्रस्तुत कविता में कवि ने भारत की सांस्कृतिक महत्ता, प्राकृतिक रमणीयता और मानवतावादी दृष्टिकोण की विशिष्टता का गुणगान किया है। कविता में साहित्यिक खड़ीबोली का सौंदर्य  विद्यमान है। तत्सम प्रधान शब्दावली है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है। साथ ही इस गीत में संगीतात्मकता, बिंबात्मकता, प्रतीकात्मकता का गुण भी है। छायावाद की करुणा, प्रेम, अतीत का गौरवगान जैसी प्रवृत्तियाँ इस गीत में लक्षित होती हैं।

निष्कर्ष: भारतीयता का गौरव

अंत में हम कह सकते हैं कि इस गीत में प्रसाद जी की राष्ट्रीयता की भावना दृष्टिगोचर होती है। एक विदेशी राजकुमारी के मुख से भारत की महानता का गुणगान करवा कर, वे यह संदेश देना चाहते हैं कि किस प्रकार दूर देश से आए हुए  विदेशी भी, भारत का सम्मान करते हैं ।भारत उनकी दृष्टि में कितना गौरवशाली है, तो हमें भी अपने देश पर गर्व होना चाहिए ।जिस समय वे यह गीत लिख रहे थे, उस समय अतीत के गौरवगान को राष्ट्रीय प्रेम के भाव को प्रस्तुत करने के संदर्भ में , एक महत्वपूर्ण अस्त्र के रूप में साहित्यकारों द्वारा अपनाया गया है। ताकि भारतवासी अपने विस्मृत सम्मान और स्वाभिमान को महसूस कर सकें, क्योंकि  जिस तरीके से अंग्रेज हमें  प्रताड़ित कर रहे थे, तिरस्कृत कर रहे थे, पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण बढ़ रहा था, ऐसे परिवेश में अपने गौरवमयी इतिहास और अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों की चर्चा कर साहित्य के माध्यम से कवि जनसामान्य में आत्म गौरव का भाव उत्पन्न करने  का एक सराहनीय प्रयास कर रहे थे और यह गीत  उसका एक  सशक्त उदाहरण है। भारत सचमुच मानवता की भूमि है।इसलिए प्रसाद जी के शब्दों में हम पुनः कह सकते हैं –

“अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।”

 

डॉ.अनु शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
लक्ष्मीबाई महाविद्यालय
बी.काम, 1/2 सेमेस्टर
हिंदी ब के विद्यार्थियों के लिए विशेष।

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Dr. Anu Sharma
Dr. Anu Sharmahttp://www.saralstudy.com
Dr.Anu Sharma is a Teacher and Professor by profession, working exclusively for the Department of Hindi at Laxmibai Mahavidyalaya. His hold on Hindi literature is amazing
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